रविवार, 6 फ़रवरी 2011

डीटीसी की नहीं एक अनोखे कर्मचारी की कहानी

"५७साल से आपकी सेवा में" डीटीसी का यह बोर्ड पिछले एक साल से दिल्ली की पेरिसनुमा सड़को से नदारद है,  आधुनिकता की दौड़ में चमचमाती लो फ्लोर बसे दिल्ली का दिल जितने में अभी भी संघर्ष करती नजर आ रही है. सत्तावन सालो से दिल्ली का बोझ ढोती डीटीसी का भले ही मेकअप हो गया हो लेकिन नोनिहाल आज भी ९७के पुराने  समय में जी रहे है, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्रों का बस पास बनाते बनाते नोनिहाल ने जेएनयू के कई छात्रों को उंचाइयो तक पहुचते हुए देखा है. दिल्ली के सबसे शांत और खूबसूरत इलाके में बसे इस विश्वविद्यालय का प्यार उनके डिपार्टमेंट के प्यार से भी काफी बड़ा हो चूका है, नोनिहाल कहते है जितना डीटीसी ने उन्हें दिया है उससे कही ज्यादा प्यार इस विश्वविद्यालय ने दिया है, वो कहते है यहाँ पूरा भारत दिखाई देता है अलग अलग राज्यों के छात्रों के पास बना कर उन्होंने उनकी भाषा भी सीखी है. नोनिहाल  अपने डिपार्टमेंट से कम तन्खुआ को लेकर नाखुश है लेकिन उन्हें इस बात की ख़ुशी है की उनके साथ के सभी कर्मचारियों का तब्दला दिल्ली के दूरदराज इलाको में  होता रहा है लेकिन उनके जेएनयू  के प्रति प्यार और अपने काम के प्रति लगाव को देखते हुए डीटीसी ने उन्हें यहा से कभी दूर नहीं जाने दिया.
               खटाखट किबोर्ड  पर चलती उंगलिया और २०इन्च के चमकदार रंगीन एलसीडी पर टिकी उनकी निघाए अपनी नौकरी  के सफ़र के पुराने दिनों को याद करती हुए थकती नहीं. सुचना प्रोद्योगिकी के इस युग में नोनिहाल आज भी, पुराने दौर में हाथ से बनाये जाने वाले पास को याद करके विंडो सेवन पर काम करना मज़बूरी बताते है. जेएनयू से पीएचडी कर रहे कलकत्ता के अनुराग गांगुली का कहना है की नोनिहाल जी ही पहले शख्स थे जिनसे वह विश्वविद्यालय में मिले तब से वह खाली समय में इनसे मिलने आते है, इनका व्यवहार घर की याद दिला देता है, छात्र गांगुली  कहते है नोनिहाल अंकल हमेशा से ही पढाई पर ध्यान लगाने की सीख देते है. कुदरत की ख़ूबसूरती को बयां करता यह विश्वविद्यालय जितना अपनी सादगी को लेकर चर्चित है  उतना ही टेफ्लास(रेस्तरो) के साथ बसा डीटीसी  बस पास का यह कार्यालय  नोनिहाल अंकल के लिए चर्चित है.
टेफ्लास के साथ बसा जेएनयू का डीटीसी कार्यालय 
                            दिल्ली के ग्रामीण इलाको को छोड़ भी दे तो, दिल्ली के दिल में बसा सिंधिया हाउस(डीटीसी बस पास मुख्य कार्यालय) के बाहर डीटीसी पास के लिए घंटो इंतजार मे खड़े लोगो कि शिकायत अक्सर कर्मचारियों  के व्यवहार को लेकर रहती है, यकिन न आए तो आसपास के डीटीसी बस पास डिपो में घूम आइए दो तीन बार अगर फॉर्म में खामिया न गिना दे तो आश्चर्यजनक नहीं  होगा असल में यह कर्मचारियों की  परम्परा बन चुकी है लेकिन इस परिपाटी को तोड़ते हुए  "नोनिहाल अंकल" लोगो में सरकारी कर्मचारियों को लेकर बनी छवि को गलत साबित कर रहे है. डीटीसी के खस्ताहाल बस पास कार्यालयों  कि दास्ता दिल्ली के कई पत्रकार चिल्ला चिल्ला कर बता चुके है लेकिन जेएनयू  के इस अनोखे कार्यालय की  कामयाबी मीडिया के कैमेरो में नजर नहीं आती शायद मीडिया के चमचमाते कैमरे "नोनिहाल अंकल" कि सादगी और उनके काम के प्रति लगाव से इसलिए दूर भागते है क्योकि सेटेलाइट के मालिक मौत बेचना पसंद करते है जिंदगी दिखाना नहीं.
                            ५८साल के "नोनिहाल अंकल" अपनी उम्र को लेकर चिंतित नहीं लेकिन डीटीसी से जल्द रिटारमेंट को लेकर दुखी है क्योकि वह चाहते है जेएनयू का साथ उनसे कभी छूठे नहीं, अगली बार जेएनयू जाना हो तो नोनिहाल अंकल से मिलना मत भूलिएगा. यह ५७साल पुरानी  दिल्ली का बोझ ढोती डीटीसी कि कहानी नहीं बल्कि डीटीसी में काम कर रहे अनोखे कर्मचारी की कहानी है. भले ही डीटीसी ने पेरिसनुमा सड़को पर दोड़ने के लिए अपनी सादगी को खो दिया हो लेकिन नोनिहाल अंकल आधुनिकता कि इस दौड़ में बदलना नहीं चाहते.
  
नोट. नोनिहाल अंकल और डीटीसी कार्यालय की फोटो न दिखाए जाने के लिए खेद है, आखिरी समय में मेरे कैमरे ने मेरा साथ छोड़  दिया था.

14 टिप्‍पणियां:

RANJAN ने कहा…

sahi kaha rohit,ek behtar shodh hai, dhanyawad is suchna aur apke post ke liye.......

बेनामी ने कहा…

achha likha hai kisi se hui baat chit ko itne sahajta se pesh karna aasan nahi hota...
behtreen pryas..

ashish mishra

स्वपनल सोनल ने कहा…

bahut badhiya lekh hai bhai..
meri subhkamnayen aapke sath hai!!

Bharti kumari ने कहा…

bahoot ache likhe hai rohit, ek dtc bus aur jnu ka jo rishte hai wo tumne shabdo me bahoot khubsurti se baya kare diye hai really u r too gud.

Nikhil Srivastava ने कहा…

badhiya. keep it up.

निहाल सिंह ने कहा…

AB ME KYA KAHU AB AAPSE SAB KUCH KAH HI DIYA HAI ..
IS NAI POST K LIYE AABHAR

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
कुलदीप मिश्र ने कहा…

बढ़िया लिखा है रोहित! तस्वीर वाली बात मैं ज़रूर लिखता, अगर तुमने नोट ना दिया होता...:) खैर, अच्छा फीचर है....

Himanshu ने कहा…

अच्छा आईडिया ...अच्छा लेखन और भावनाओ से भरा पोस्ट ...बधाई

नई राह ने कहा…

शुक्रिया दोस्तों

rahul parcha ने कहा…

bahut umda.... ummid karta hu sabhi dtc wale nonihal ji ki rah par chale.. wse ye post padkar mujhe un dino ki yad a gai jab me bhi 75 rs me poore 5 maah k liye muft DTC safar kia karta tha... clg se nikalne k bad agr kisi chiiz ki sabse jayda yad aai hai to wo DTC ka pas hi hai....

shukria Rohit, un dino ki yad dilane k liye.....
behad umda lekh...

rahul parcha ने कहा…

bahut umda.... ummid karta hu sabhi dtc wale nonihal ji ki rah par chale.. wse ye post padkar mujhe un dino ki yad a gai jab me bhi 75 rs me poore 5 maah k liye muft DTC safar kia karta tha... clg se nikalne k bad agr kisi chiiz ki sabse jayda yad aai hai to wo DTC ka pas hi hai....

shukria Rohit, un dino ki yad dilane k liye.....
behad umda lekh...

Eddie ने कहा…

bht khoob bhai jaan :) lage raho sahi ja rhe ho
:)

सूचना नारायण ने कहा…

bahut acah hai rohit ji ......
keeep it up..